पैसा कमाने का चस्का प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले मनोज शर्मा बताते हैं कि सौरभ पढ़ने में बहुत होशियार था। कोचिंग के टेस्ट में अव्वल आता था। उसमें प्रतिभा थी। दो बार उसने एमपीपीएससी दी और प्रारंभिक परीक्षा में सफलता हासिल की मुख्य परीक्षा तक पहुंचा।
एक बार साक्षात्कार में रह गया। इसी दौरान पिता के निधन के बाद उसकी अनुकंपा नियुक्ति परिवहन विभाग में हो गई। यहां से उसे पैसा कमाने का चस्का लगा।
सामने आया है कि सौरभ के दो राजदार ही सबसे बड़े मुखबिर हैं। मेंडोरी के जंगल में सोने और रुपये से भरी गाड़ी की सूचना इन्हीं के जरिए पहुंचाई गई। परिवहन विभाग में आने के बाद सबसे पहले जो सौरभ का करीबी था, उसने एक साझेदार से सारे राज उगलवाए, फिर एजेंसियों तक यह जानकारी पहुंचाई।
जिस साझेदार ने राज खोले, उसके नाम से भी सौरभ द्वारा संपत्तियां लिए जाने की बात कही जा रही है। इसके यहां छापे नहीं पड़े, क्योंकि यह मुखबिर है। टाइल्स के नीचे चांदी की सूचना भी इसी के जरिए लोकायुक्त पुलिस की टीम तक पहुंची थी।
पूर्व मंत्री की भूमिका पर भी उठे सवाल
कंपनी की शुरुआती लागत 10 लाख रुपये थी। कंपनी का टर्न ओवर नहीं खोला गया है। 31 मार्च 2023 को कंपनी की आखिरी एनुअल मीटिंग हुई थी। ऐसा कहा जा रहा है कि शरद सौरभ का साझीदार है और दोनों की मुलाकात एक पूर्व मंत्री ने कराई थी।
सौरभ परिवहन विभाग में ही कार्यरत स्टेनो का रिश्तेदार है। अनुकंपा नियुक्ति कराने के लिए इसी रिश्तेदार ने तार जोड़े, फिर स्टेनो के जरिए ही उसने परिवहन विभाग के दाव-पेंच सीखे और रिश्तेदार को दरकिनार कर एक पूर्व मंत्री का खास बन गया।
सौरभ ने पहले अपने स्टेनो रिश्तेदार के जरिए चिरूला बैरियर को ठेके पर लेकर चलवाया। उसे कमाई का चस्का लगा तो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सभी बैरियर का ठेका वह लेता था।
फिर अपने हिसाब से टीएसआई, आरटीआई को बैरियर का ठेका देता था। बाकायदा बैरियर की बोली लगवाता था, लेकिन प्राइवेट कटर इसी के रहते थे। जो पूरा हिसाब-किताब रखते थे। इस पर आने वाले पूरे पैसे का हिसाब रखकर खुद ही पैसा बांटता था।
उसकी इस मनमानी का विरोध विभाग में ही होने लगा था। कई टीएसआई, आरटीआई ने इस तरह काम करने से इन्कार कर दिया तो फिर सौरभ ने परिवहन विभाग की नौकरी से इस्तीफा दे दिया।